कभी भूले से छत पर जो पहुंचे होड़ में अपनी पतंग को ऊंचे ले जाना कभी भूले से छत पर जो पहुंचे होड़ में अपनी पतंग को ऊंचे ले जाना
जान लेते मुझको थोड़ा, तुम्हें यूँ कहने का मौका न मिलता, जान लेते मुझको थोड़ा, तुम्हें यूँ कहने का मौका न मिलता,
आस भरे नयनों से वसुंधरा निहारती। उठो-उठो, जगो-जगो नौजवान भारती।। आस भरे नयनों से वसुंधरा निहारती। उठो-उठो, जगो-जगो नौजवान भारती।।
कुनीति चरम पर फैली खाती नीति को नोच। कुनीति चरम पर फैली खाती नीति को नोच।
समय रेत की तरह हाथों से फिसलता रहता है, और हम हर बार पीछा करते ही तो रहते हैं, समय रेत की तरह हाथों से फिसलता रहता है, और हम हर बार पीछा करते ही तो रहते ह...
दुःख - दर्द बाँटना चाहूँ, मुख से कुछ कह न पाऊँ, दुःख - दर्द बाँटना चाहूँ, मुख से कुछ कह न पाऊँ,